2,99 €
यह एक अफ्रो-अमेरिकन जाने-माने क्रांतिकारी मेलकॉम एक्स की इस्लाम का अध्ययन करने और फिर इसे अपनाने की दास्तां है। मेलकॉम एक्स ने अमेरिका की रंग-भेद की समस्या का समाधान इस्लाम में पाया। मेलकॉम एक्स कहता था-मैं एक मुसलमान हूं और सदा रहूंगा। मेरा धर्म इस्लाम है।
Das E-Book können Sie in Legimi-Apps oder einer beliebigen App lesen, die das folgende Format unterstützen:
Veröffentlichungsjahr: 2015
यह एक अफ्रो-अमेरिकन जाने-माने क्रांतिकारी मेलकॉम एक्स की इस्लाम का अध्ययन करने और फिर इसे अपनाने की दास्तां है। मेलकॉम एक्स ने अमेरिका की रंग-भेद की समस्या का समाधान इस्लाम में पाया। मेलकॉम एक्स कहता था-मैं एक मुसलमान हूं और सदा रहूंगा। मेरा मजहब इस्लाम है।
मशहूर मुक्केबाज मुहम्मद अली के साथ मेलकॉम
जाने-माने और क्रांतिकारी शख्स मेलकॉम एक्स का जन्म 19 मई 1925 को नेबरास्का के ओहामा में हुआ था। उसके माता-पिता ने उसको मेलकॉम लिटिल नाम दिया था। उसकी मां लुई नॉर्टन घरेलू महिला थी और उसके आठ बच्चे थे। मेलकॉम के पिता अर्ल लिटिल स्पष्टवादी बेपटिस्ट पादरी थे। अर्ल काले लोगों के राष्ट्रवादी नेता मारकस गेर्वे के कट्टर समर्थक थे और उनके कार्यकर्ता के रूप में जुड़े थे। उनके समर्थक होने की वजह से अर्ल को गोरे लोगों की तरफ से धमकियां दी जाती थीं, इसी वजह से उन्हें दो बार परिवार सहित अपने रहने की जगह बदलनी पड़ी। मेलकॉम उस वक्त चार साल के थे। गोरे लोगों ने अर्ल के लॉन्सिग, मिशिगन स्थित घर को जलाकर राख कर दिया और इस हादसे के ठीक दो साल बाद अर्ल लिटिल का कटा-पिटा शव शहर के ट्रॉली-ट्रेक के पार पाया गाया।
इस हादसे के बाद उनकी पत्नी और मेलकॉम की मां लुई का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया और उसे मनोचिकित्सालय में भर्ती कराना पड़ा। मेलकॉम की उम्र उस वक्त छह साल थी। ऐसे हालात में लुई के इन आठ बच्चों को अलग-अलग अनाथालय की शरण लेनी पड़ी
मेलकॉम बचपन से ही चतुर और होशियार विद्यार्थी था। वह हाई स्कूल में क्लॉस में टॉप रहा। लेकिन जब उसने अपने प्रिय अध्यापक से वकील बनने की अपनी मंशा जाहिर की तो वह टीचर बोला-तुम जैसे नीग्रो स्टूडेंट के लिए वकील बनने के सपने देखना सही नहीं है। इसी सोच के चलते मेलकॉम की पढ़ाई में रुचि कम हो गई और पंद्रह साल की उम्र में मेलकॉम ने पढ़ाई छोड़ दी।इस बीच मेलकॉम गलत लोगों की संगत में फंस गया और मादक पदार्थों के कारोबारियो से जुड़ गया।
गलत संगत के चलते ही बीस साल की उम्र में धोखाधड़ी और चोरी के एक मामले में उसे सात साल की सजा हुई। जेल से बाहर आने पर उसने नेशन ऑफ इस्लाम के बारे में जाना। नेशन ऑफ इस्लाम से जुड़कर उसने इसके संस्थापक अलीजाह मोहम्मद की शिक्षाओं का अध्ययन किया और इसी के चलते 1952 में उसमें काफी बदलाव आ गया।